अपने अस्तित्व के भ्रमित पानी में
डुबा-छुपा रक्खा था
ग्रह-नक्षत्रों ने
सारे लोगों का भाग्य
अवरोधों की पहाड़ियाँ
और गहरे नदों को लाँघने में
वास्तविकता के
आत्मगौरव से
बहुत तपा
और उनके अस्तित्व के पानी को
सुखा दिया, मैंने
उड़ा दिया, केवल आकाश रह गया
हाँ पहले, उनके हाथों से
सारे लोगों का भाग्य छीन लिया
और बाँट दिया जो जिसका था
जो जैसा चाहता था ।
सतर्क किया-
अब चिन्ता की उनकी
आगे का क़दम बढ़ाना यदि छोड़ा
मन कहीं और दिया
भाग्य झटक लूँगा तुम्हारा
तुम्हारे ही हाथों से
फिर तुम
धोखे के चरणों में
गुज़ार देना ज़िन्दगी।