♦ रचनाकार: अज्ञात
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छूटौ री मोरी गुइयां जनकपुर
अवधपुरी को लये जात हैं,
लक्ष्मणजी के भैया। जनकपुर छूटौ...
राजा जनक से बाबुल छूटे,
रानी सुनैना सी मैया छूटीं
लक्ष्मी निधि से भैया छूटे,
ऋद्धि सी भोजइया। जनकपुर...
मिल लो री सब सखी सहेली,
अब मिलने को नैयां। जनकपुर...
छूटौ री मोरी गुइयां जनकपुर