बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: ईसुरी
छैला छलन चलौ नव काजर,
दयैं राधा बृज नागर।
मुकती भोल बिकैं मथरा में,
कजरौटन के आगर।
श्री वृषभान-मनदर में दीपक,
है सनेह कौ सागर।
कोयन भीतर रेखा गागई,
परती दिखा उजागर।
कात ईसुरी तुम लौ रावै
प्रान हमारे हाजर।