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छोटा-सा गाँव / कुमार कृष्ण

बनिये की बोरी में परखी से बिंधा-बिंधा
सुबह- शाम मिला मुझे मेरा गाँव!

तोल रहे तकड़ी पर, चीर रहे सरेआम
खुले मैदान में लगा रहे मोल- भाव
कपड़े के थान में इन्च- इन्च कटता
धुनका हुआ मिला मुझे मेरा गाँव
अंग्रेजी नामों में काँच के बर्तन में
भुना- भुना मिला मुझे डब्बे में गाँव!

ऊँची इमारत पर चढ़ा हुआ दिन-रात
कर रहा मजबूत घर और आदमी
ऊन की दुकान पर सर्दी में काँपता
बदरंग मिला मुझे कम्बल में गाँव!

रोटी के अन्दर, पानी के अन्दर
जलता हुआ गलता हुआ
पुस्तक में कटा-कटा गीतों में बँटा-बँटा
देश की तरक्की के काग़ज़ पर छपा हुआ
मिला मुझे दबा हुआ फाइल में गाँव।

जूते में चलता हुआ झण्डे में हिलता हुआ
रिक्शा के पैडल में सरेराह छलता हुआ
सुबह-शाम मिला मुझे सडकों पे गाँव
बनिये के राजा के आसन हिलाता हुआ
कभी-कभी मुझे मिला छोटा-सा गाँव।