कोने की
उस छुतहा मेज पर झुका हुआ
भीतर के गुणा-भाग में गहरे डूबा-सा
दबा फ़ाइलों के अम्बार के तले
वह जो कीड़ा है आदम के शक़्ल में
वह छोटा बाबू है ।
जी हाँ, जी हाँ हुज़ूर ,
यही राम बाबू है !
दफ़्तर के पिंजरे का
यह घायल पंछी
नुचे हुए पंखों के दंश भूल कर सारे
मार रहा सेंत में कुलाँच ।
सीने में घुसे हुए
भाले की मूँठ में
अनुभव की इस विडम्बना का सुख हिलगाए
साध रहा है उखड़ी साँस ।
साँच को जला देगी आँच
यह वहम बोदा
स्थितिरक्षा के
अवश प्रयासों से झाड़ रहा
मन पर कर काबू है ।
जी हाँ, जी हाँ हुज़ूर,
यही राम बाबू है !