Last modified on 16 जनवरी 2011, at 15:25

छोटी-सी बात / नीलेश रघुवंशी

तुम्हें देखते ही गिरती हूँ घुटनों के बल
चूमती हूँ इतना ज़्यादा
मारे शर्म के लाल हो जाता है सूरज
मेरे प्यासे कंठ में पानी की एक बूँद भी नहीं
सूखते हैं मेरे ओंठ
और बूँद नहीं हो तुम ठंडे जल की
क्या सिर्फ़ इतनी-सी बात पर
मैं तुम्हें प्यार करती हूँ और तुम मुझे प्यार नहीं करते
मुझे एक उदास गीत लिखना चाहिए
बैसे यह बात इतनी-सी है नहीं
इसी छोटी-सी बात से फूटते हैं झरने उदासी के

मंघलवारवार, 14 मार्च 2006, भोपाल