क़दमताल करती है औरत
कभी तेज़ कभी धीमे
जैसी बजती है धुन
नाचती है उसपर
कभी हँस कर
कभी रो कर
पाँवों को एक क्रम से
उठाने-बिठाने के
उसके बेढब प्रयासों को देखते
उससे बड़ी उम्र की एक औरत
मुँह बिचकाती है
उसके पल्लू को
अँगुली से लिपेटती
साथ-साथ ठुमकती है
घर की एक
छोटी औरत.