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छोटोॅ सोच / नवीन ठाकुर ‘संधि’

सोचलियै यहाँ पेॅ छीयै हम्मी,
मतुर, सब्भै सें छै हमरै में कमी।

एक सें एक हस्ती छै महान,
जेकरा जानै छै जग जहान।
हम्में सोचै में होल्हाँ नादान,
हमरा सें बड़ोॅ जे सम्हारलोॅ छै कमान।
हमरा तेॅ खाय गेल्लोॅ बड़का गम्मेॅ,

हमरोॅ सोचें हमरा बनैलकै पागल,
आपनोॅ करमों सें होल्हाँ हम्में घायल।
सौसे दुनिया कहै छै दलाल,
हमरा सें बेसी सब्भेॅ होय गेलोॅ मालामाल।
सुनो "संधि" , आबेॅ बचैतौं आपनें करनी॥