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छोरी : दो / ओम पुरोहित ‘कागद’
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ओम पुरोहित ‘कागद’
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भोत अंधारो है
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गळी में खेलतां
लागगी ताळ
बीरै खींच्या बाळ
काढी गाळ
घर सूं निकळी तो
बाढ देस्यूं खुरड़ो!