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जंगल राज / आयुष झा आस्तीक

 वो गड़ेड़िए के लिबास में
छिपा हुआ भेड़िया...
भेड़ के दूध में
शीलाजीत मिला कर पीने लगा...
भेड से ऊन उतार कर
उसे अर्द्धनग्न करके
सियारों में बाँटता रहा
सियार खुद को शेर समझने लगा...
और भेड़िए कसाई बनते गए...
बकरियाँ कसाई खाने में टँगने लगी...
मेमने के अस्थियों पर
जंगल राज लहलहाने लगा...
सुनो,
अब तो जागो...
क्यूंकि
अब निर्बलों और असहाय को
आगे लाने के लिए हाथ बढाना होगा...
मेमने के बिखरे हुए रक्त में भिंगो कर
लाल पताका फहराना होगा...