शिमला के अकड़ाए हुए
देवदार से भला
क्या मुकाबला थुनाग की रई का
पर इतना सीधापन भी क्या
कि कुक्कर् की पहली विसल
से भी पहले गल जाएँ
बगस्याड़ और जंजैहली के राजमाश।
कितने ही छोटे-छोटे रायगढ़ों के आगे
तन कर रहता है मालरोड ।
इधर, अभी लोकगीत ही गाता है
या खामोश रहता है भीतरी सिराज
इसीलिए बचा है शायद।
डर यही है
जिस दिन शिमला से
जुड़ जाएगी
जँजैहली घाटी
खत्म हो जाएगी।