रतजगें थी स्मृतियाँ
और चित्रमयी लिपियाँ
इंतज़ार!
आस ख़्वाब बुने
काजल आँखों ने
चाँद-सूरज,सगुन पाखी
मन जलता रहा
तन सुलगता रहा
फ़िर भी कोई जाने क्यूँ
धूप-खुशबू बन महकता रहा!
रतजगें थी स्मृतियाँ
और चित्रमयी लिपियाँ
इंतज़ार!
आस ख़्वाब बुने
काजल आँखों ने
चाँद-सूरज,सगुन पाखी
मन जलता रहा
तन सुलगता रहा
फ़िर भी कोई जाने क्यूँ
धूप-खुशबू बन महकता रहा!