हम नहीं है देह
हम दो अरणियाँ हैं।
हमारे लिपटने से उठी है जो लपट
प्यार की ही ऋचा है वह
जगाती देवता को
जो हमारी धमनियों में सो रहा है !
(1981)
हम नहीं है देह
हम दो अरणियाँ हैं।
हमारे लिपटने से उठी है जो लपट
प्यार की ही ऋचा है वह
जगाती देवता को
जो हमारी धमनियों में सो रहा है !
(1981)