डगमग डगती डगर 
बिखरती बहर गीत की 
जगर-मगर यह नगर 
गैल सुनसान प्रीत की
मीत भये अनजान 
भीत ढहती प्रतीति की 
जाहिर सकल जहान 
निठुरता निपट-जीत की
कल तक थे तुम साथ 
बात लगती अतीत की 
छोड़ गये हो हाथ 
याद भर अब व्यतीत की
वीणा की कलतान 
अब न मेरी उछंग में 
मन्द्रमेघ के गान 
अब न मेरी मृदंग में
गंगा की हलकोर 
अब न जीवन - तरंग में 
टूटी जीवन डोर 
बधिक कातर कुरंग मैं
जटिल कुटिल मुस्कान 
आज देखी अनीति की 
डगमग डगती डगर 
बिखरती बहर गीत की।