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जटिल जल / दिनेश कुमार शुक्ल

पहनकर बाना
बनाये भेस
कोई कह रहा है
इधर आओ
मुझे देखो
मैं तुम्हारे दुख हर लूँगा
कला-कौशल-धन-प्रबन्धन-ज्ञान
सब कुछ पास है मेरे

बहुत गहरे दुख में तुम मुस्कुराते हो
उसे तुम जानते हो
वह तुम्हारा स्वयं का अपरूप
भूखा और प्यासा और भाषाहीन
जन्म उसका हुआ था जिस देस
उसमें कभी सूर्योदय नहीं होता
जानते हो तुम
कि उसके पास बस छल है
एक अँजुरी ही सही
लेकिन
तुम्हारे पास जल है
और उस अपरूप का भी
बचे जल पर
कुछ न कुछ अधिकार बनता है
देखना है
इस जटिलता का
करोगे किस तरह निर्वाह ।