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जड़ों वाला कवि हूं / विष्णुचन्द्र शर्मा

बस मैं एक सजीव पेड़ हूं
जिसकी जड़ें नीचे तक गई हैं सादतपुर में।
मेरे न रहने पर भी जिसकी पत्तियां हवा से
बतियाती हैं; धूप और वर्षा झेलते हुए नहाती हैं।
जिससे फल तोड़ते हैं बच्चे अकेले या सदलबल
दीवार फांदकर चखते हैं जामुन
तोड़ते हैं अमरूद
और एक पकी बेल देखकर साधते हैं डंडा
मैं ऐसा ही एक
जड़ों वाला पेड़ हूं