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जथारथ (5)/ हरीश बी० शर्मा


तूं भली म्हारै में
म्हैं भलो थारै संग
खिसकाय लेवां दिन
आंख्यां में मोतियो है
दिखै जित्तै देखलां
फेर तो जोत जावणी है,
नीं तो पाप करयो
बेटी जण‘र
फोड़ा देख्या तो सहन करया
राज बीनणी रो हो
बेटो ई जे चाकरी करै है
म्हां कुण हुवां हां
हुकम रा हरकारा ?