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जनक जी सत्य प्रतिज्ञाकारी / बुन्देली

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

जनक जी सत्य प्रतिज्ञाकारी
मिथिलापुर में रचो स्वयंवर,
भयो शोर जग भारी। जनकजी...
देश-देश के जुरे महीपति,
अमित तेज बलधारी। जनकजी...
राजसमाज कुंअर दोऊ आये,
लखि मोहे नर नारी। जनकजी...
राउं सहस दस चाप चढ़ावें,
तिल भर टरे न टारी। जनकजी...
बैठे देख महीपति हारे,
भये मिथलेश दुखारी। जनकजी...
रानी सुनैना व्याकुल सिय लखि,
उठे राम धनुधारी। जनकजी...
गुरु को कर प्रणाम मन ही मन,
दृष्टि चाप पे डारी। जनकजी...
कंचन कुंअरि निमिष महुं टोरयो,
जय धुनि सुरन उचारी।
जनक जी...