(सरगोशियों में डूबी उस अनाम आवाज़ के नाम)
मुलायम सी बर्फ़ भी
पत्थरा गई है आज
इस शीत लहर से
जम गई हैं भावनाएं तक भी
काश...
चुपके से आजाती तुम
एक सूर्य किरण सी
और पिघला देती
मेरे भीतरी व्यक्तित्व के
एक-एक कोने में बसे
सारे हिमलम्ब
और समेट लेती मुझे
अपनी गरम गरम बाहों में.