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जनानी / पतझड़ / श्रीउमेश

बुद्ध माली के बेटी कलवतिया ऐली हमरोॅ छाँह।
बोलेॅ लागली चौबे जी सें पकड़ा केॅ झकझोरी बाँह॥
‘कक्का हम्में एम.एल.ए. के लेली ठाढ़ी भेली छी।
तोहरा सें कुछ अरजी छै यै सें तोहरा लग ऐली छी॥
तोहरै बातोॅ पर ई गाँव चलै छै हम्में जानै छी।
तोहें लीडर छोॅ गामों के हम्मू एकरा मानै छी॥
हमरा वोट दिलाबोॅ कक्का;’ चौबे बोलनै मूँ बिचकाय।
”जोॅर जनानी केॅ यैसे की? ओकरोॅ कहलोॅ कै पतियाय?
बोलें बकरी सें की खेती कहियो हुअेॅ सकै छै गे
आरो बकरी सें की गाड़ी कहियो चलेॅ सकै छै गे?
खेता में या माल ढुऐ में वरदे जुटेॅ सकै छै गे।
बकरी बैठली बच्चा दै छै, पठबे रोज कटै छै गे॥“
चौबे जी खैनी ठोरोॅ दाबी केॅ, चौबे जी बोलेॅ लागलै।
जेना जोॅर-जनानी के सब पोल हुनी खोलेॅ लागलै॥
बोललै, ऐम.एल.ए. बनबा के दुर्मत्तीं घेरलेॅ छौ गे।
कौनें सिखलैलेॅ छौ कौनें कोल्हू मंे पेरलेॅ छौ गे।
चूल्होॅ, चक्की, चकला, बेलना केकरा सौंपी देभै तों?
हड़िया पतली छोड़ी केॅ बोले आरू की खैभै तों?“
ऊ बोलली, देख छौ कक्का दुनियाँ आगू बढ़ली छै।
फूलन छेलै डकैतिन, लेकिन वोहो सांसद बनली छै॥
चौबे बोललै, ‘बनें डकतिन, सांस दबयिे जबे तों।
सभे डकैतिन सांसद होय छै? खाली गांव घिनैबे तों
हम्में तोरोॅ कुछ नै करबौ, ऐहें नै तों हमरा पास।
मूँ लटकैलें कलबतिया गेली, ऊ भेली खूब उदास॥