Last modified on 27 फ़रवरी 2014, at 22:40

जन्मदिन / स्वप्निल श्रीवास्तव

वे शहर के नामी-गिरामी नागरिक है
कई अफ़वाहों में आया है उनका नाम
शहर की गुमनाम हत्याओं में उनका ज़िक्र
बहुत शान से किया जाता है
वे अकेले नही अंगरक्षकों की फौज के
साथ चलते है
शहर के लोग अदब से नही, डर से
सलाम करते हैं
उनके बिना नही बनता शहर का बजट
काग़ज़ पर बनती है सड़कें-पुल
हल्की बारिश में गल जाता है काग़ज़
मिट जाते है सुबूत
शहर की हत्याओं के लिए उनकी अनुमति
ज़रूरी है अन्यथा हत्यारों की ख़ैर नही
उनके जन्मदिन के समारोह में पूरा शहर
इकट्ठा हो जाता है
वे केक के सामने चाकू ले कर
झुके रहते हैं
एक सिरफिरा चुपके से कहता है
वे केक नही किसी आदमी की गर्दन
काट रहे हैं