जन्मभूमि जननी !
पृथ्वी शिर और मुकुट
चन्दन सन्तरिणी
जन्भूमि जननी।
वन-वनमे मृगशावक,
नभमे रवि-शशि दीपक,
हिमगिरिसँ सागर तक
विपुलायत धरणी,
जन्मभूमि जननी।
दिक्-दिक्मे इन्द्रजाल,
नवरसमय आलवाल,
पुष्पित अंचल रसाल,
नन्दन वन सरणी,
जन्म भूमि जननी
शक्ति, ओज, प्राणमयी,
देवी वरदानमयी,
प्रतिपल कल्याणमयी
दिवा अओर रजनी,
जन्मभूमि जननी।