उसे मरे
बरस हो गये हैं।
दस-या बारह, अठारह, उन्नीस-
या हो सकता है बीस?-
मेरे जीवन-काल की बात है-
अभी तो तुझे कल जैसी याद है।
कैसे मरे?
कुछ का ख़याल है कि मरे नहीं, किसी ने मारा।
कुछ कहते हैं, लम्बी बीमारी थी।
कुछ कि मामला डॉक्टरों ने बिगाड़ा।
कुछ कि अजी, डॉक्टरों की शह थी।
राजनीति में क्या नहीं चलता?
कुछ सयाने-कि भावी कभी नहीं टलता।
मौत आती है तो मरते हैं; रहता नहीं चारा।
कुछ और फ़रमाते हैं : अब छोड़ो जो मर गया।
जो ज़िन्दा हैं उनकी सोचो; वह तो तर गया।
मर जाने के बाद
किस ने क्या किया था कौन जानता है?
कोई श्रद्धा से कहता है, बड़े काम किये;
कोई अवज्ञा से-कौन मानता है!
कोई सुझाता है : मौका ऐसा था कि बन गये नेता
आज होते तो कोई ध्यान नहीं देता।
कोई इतिहास-पुरुष कहता है, कोई पाखंडी, कोई अवतार।
कोई अन्धों के देश का काना सरदार।
लगा ही रहता है वाद-विवाद।
पर एक बात तो मानी हुई है-
ऐतिहासिक तथ्य है, सब को ज्ञात है-
कि उन्हें जनमे ठीक सौ बरस होने आते हैं।
और इस लिए हम उन की जन्म-शती मनाते हैं।
इस में हम सब साथ हैं।
नयी दिल्ली, 29 सितम्बर 1969