कांकड़ आंबो मोरिया रे भँवरा, एकेली क्या जाय
बाळा की माय साथी पूजण जाय सातमा सखी न ले जायगा
पयली चिट्ठी बाळा का दाजी क दीजो,
दाजी आव रे जायो सार,
दूसरी चिट्ठी रे बाळा की जि माय क दीजो,
जि माय आव व झूलो राळ
तीसरी चिट्ठी रे बाळ का मामा क दीजो
मामा आवरे गहणा लाव रे,
चौथी चिट्ठ रे बाळ की मामी क दीजो,
मामी आव वो झग्गा टोपी लाव वो,
पांचवी चिट्ठी रे बाळा का नाना दाजी क दीजो,
नाना दाजी आव रे लाड़ लड़वा,
छटी चिट्ठी रे बाळ की मोमइ क दीजो,
मोमइ आव रे बाळ न्हवाड़,
सातवीं चिट्ठी रे बाळा की बुवा क दीजो,
बुवा आव वो पतासा वाट,
आठवीं चिट्ठी रे बाळ की मावसी क दीजो,
मावसी आव तो छग्गा टोपी लाव वो,
नवीं चिट्ठी रे बाळा की मामी क दीजो,
मामी आव वो गहणो पेराव वो।
-ग्राम के काकड़ (सीमा) पर आम में बौर आ गये हैं। बालक की माता अकेली
जलवाय पूजन को नहीं जाती है, संग में सहेलियों को ले जाती हैं।
गीत में कहा गया है कि बालक का जलवाय पूजन का कार्यक्रम है, इसलिये
पहली चिट्ठी बालक के दादा को देना और लिखना कि दादा आओ और बालक
को उत्तम संस्कारित करो। दूसरी चिट्ठी बालक की दादी माँ को लिखना और लिखो
कि आकर बालक का पालना बाँधें। तीसरी चिट्ठी बालक के मामा को भेजो और लिखना
कि वह बालक के लिए गहने लायें। चौथी चिट्ठी बालक की मामी को भेजो कि वह बालक
के लिए झग्गा-टोपी लायें। पाँचवी चिट्ठी बालक के नाना को लिखना कि वह लाड़-प्यार
करें। छठी चिट्ठी बालक की नानी को लिखना कि वह आयें और बालक को स्नान करवायें।
सातवीं चिट्ठी बालक की बुआ को लिखना कि वह आकर बतासे बाँटे। आठवीं चिट्ठी बालक
की मौसी को देना कि वह बालक के लिए झग्गा-टोपी लायें। नवीं चिट्ठी बालक की मामी
को देना कि वह आकर गहने पहनावें।
इस प्रकार गीत में जन्म संस्कार के बारे में प्रचलित रीति-रिवाज का वर्णन किया गया है।