जबसे नींद टूटी है
स्वप्न की तलाश में हूँ
पार्थ हूँ महासमर का
कृष्ण की तलाश में हूँ
मन में छिपा रावण
रोज़ सर उठाता है
थोड़ा-सा राम मैं भी हूँ
मगर
मन-ही-मन
किसी विभीषण की तलाश में हूँ।
जबसे नींद टूटी है
स्वप्न की तलाश में हूँ
पार्थ हूँ महासमर का
कृष्ण की तलाश में हूँ
मन में छिपा रावण
रोज़ सर उठाता है
थोड़ा-सा राम मैं भी हूँ
मगर
मन-ही-मन
किसी विभीषण की तलाश में हूँ।