मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
जबे पग छुअलक<ref>छुआ, स्पर्श किया</ref> नउनियाँ<ref>नाइन, हजामिन</ref> जय-जय कहु सिय के।
लछमी बिराजे हिरदा द्वार<ref>हृदय द्वार</ref> जय जय कहु सिय के॥1॥
एक नोह<ref>नख, नाखून</ref> छिलले<ref>छिलना, तराशना, काटना</ref> दूसर नोह छिलले, जय जय कहु सिय के॥2॥
टुके टुके<ref>टुकुर-टुकुर</ref> सिय मुँह ताके, जय जय कहु सिय के॥2॥
रानी सुनयना देलन हाँथ के कगनमा, जय जय कहु सिय के।
आउरो देलन गलहार, जय जय कहु सिय के॥3॥
हँसत खेलइते घर गेलइ नउनियाँ, जय जय कहु सिय के।
दुअरे पर नवबत झार<ref>नौबत झड़ना मुहावरा है, जिसका तात्पर्य शहनाई<ref>मंगल वाद्य</ref> बजने से है।</ref> जय जय कहु सिय के॥4॥
शब्दार्थ
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