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जब इल्लियां नाच उठेंगी / नीलोत्पल

कृषक
खेतों में
बुवाई के समय
तुम्हारी बनाई गई पांतें
एक हो जाएंगी
जब इल्लियां नाच उठेंगी
कोई फ़ासला, ख़ालीपन नहीं
ऊंची लहरदार फसलों के दरम्यान

उस वक़्त धरती एक बिंदु पर होगी

चमकती टिड्डियों का दल गुज़रेगा
नदी के ऊपर से

मछलियां अपने पेटों में छिपाए अंडों को
बाहर निकालेंगी

चिड़ियां जिन्हें नहीं मालूम मौसम बदलने पर
कहां जाना हैं
वे लौट आएंगी खेतों की ओर

तितलियां और भौंरे
पक चुकी ज्वार और मकई की बालियों पर
बेसुध मंडराएंगे

कलम स्वतः बंद हो जाएगी

तुम्हारे चेहरे, हथेलियों और पीठ की खुरच से
लहक उठेगी

जिंदगी जानेगी नमक का स्वाद.....