जब जाय जवानी
करके बहाना
और बुढ़ापा लहरा लगाई
बताइ फिर तोर बार के हर चाँदी के डोरा
जीवन के लम्बाई चौड़ाई
नरम नेनसुक के ओढ़नी तरे से निहुर के
झाँकत झटकी अँजोर
सोना के कान के मोहर तोर
मोटा चश्मा के मारे
लगी आँखि भारी
लगी कि तू ताके है
बाकी देखे है ना
तौभी संसार में के हमसे जादा
उ अँखिया के चरखा में
पढ़े पाई
तोर चाहत के
ऊँचाई
गहराई
हाँ चाहे सोखी समय तोरे सूरतिया के रस
चाहे चेहरा पर खींची रेखा
नरम ढीला होएँ सब देंही के नस
चाहिली हम तोके, चाहिबे सदा।