जब
जो
मैंने कहा
न बनकर कहा
न बिककर कहा;
तह में पहुँचकर,
बहाव में बहते-बहते
देर तक बहा,
तब खोजकर जो गहा,
शब्दार्थ में गूँथकर,
रचनाओं के रूप में कहा-
चेतन सृष्टि का कर्त्ता हुआ
अमानवीय बोध का हर्त्ता हुआ।
व्यक्तित्व जो मैंने गढ़ा,
जीने की लड़ाई में गढ़ा,
आगे ही आगे बढ़कर गढ़ा,
सच के साथ जुड़कर गढ़ा;
न भीरु हुआ मैं
न भयाक्रांत हुआ मैं;
द्वन्द्व में निर्द्वन्द्व जिया मैं,
प्राणों से पुष्ट हुआ मैं।
रचनाकाल: ०४-१०-१९९०