जब तीस की होगी
तुम्हें वह सब बतलाना ही होगा
जो अब तीन की हो जब
बतलाती हो
जैसे यह कि दीवारों पर लकीरें खींची हैं
और यह खुशी है तुम्हारी
और कि यह खुशी होनी चाहिए हमारी
जैसे कि तुमने फाड़े हैं किताब में से पन्ने
और काग़ज़ की गेंद है तुम्हारे पास
और कि जिसे खेलने हमारे साथ है तुम्हारी आस
जैसे कि तुम्हारी छोटी कुर्सी खींच आती खिड़की तक
और जब दिल में मेरे धड़कता है ख़तरा
खुलता है तुम्हारी दुनिया का झरोखा
एक-एक क़दम होगा याद रखने लायक
पल-पल संजोएँगे हम तुम्हारा संसार
तीस की जब होगी उतारेंगे भार।