धीरे से खोल कपाटों को, नीरवता से जब तुम आये,
चमकी हो चपला जैसे, चितवन में विद्युत भर लाये।
जब तुम आये,
जैसे रचना चित्र कल्पना, जैसे जटिल जाल स्मृति के
भाषा के अपठित भावों के, प्रश्न लिए पलकों पर आये।
जब तुम आये,
शांत सरोवर जल सम स्थिर, मौन गूढ़ परिवेश उमंगित,
नूतन कम्पित स्वर तरंग, सुस्मित अधरों पर ले आये।
जब तुम आये,
मन गति के आयाम सभी, हो गए मुक्त, बंधन विहीन,
रंजित सम्मोहित दृष्टिपात, मादक नयनों में भर लाये।
जब तुम आये...