Last modified on 12 जुलाई 2023, at 23:59

जब पृथ्वी चपटी थी / नितेश व्यास

जब पृथ्वी चपटी थी
एक सदी तक मैंने उस पर
एड़ियाँ घिसी

एक सख़्त गोलाई
मेरी एड़ियों से निकल
चढ़ती गयी पृथ्वी पर
परत की तरह

एड़ियों में अब नहीं है दरारें
है पृथ्वी के खुरदरे कोण
जिनमें भरता फिर रहा हूँ
यहां-वहाँ बिखरा सूखा आकाश॥