Last modified on 5 जुलाई 2010, at 15:16

जब हँसने की घड़ी आई / गोबिन्द प्रसाद


हँसने के लिए
       रोता रहा तमाम उम्र
और जब हसने की घड़ी आई
तब हँसना तो दूर
ढंग से मैं रोना भी भूल चुका था