सिर्फ तीन कठ्ठा जमीन पाने का मकसद था मेरा
और मैंने दांत गड़ाये रखे थे अपनी जिद पर
कि किसी तरह से भी हासिल करके रहूंगा मैं इसे
हौसले बुलंद होते थे मेरे हर दिन
और चेहरे पर तनाव आ जाता था घर लौटते-लौटते
और तनाव उस दिन चरम पर था
जब यह भूमि मेरे पास थी
इस पर कहीं घास तो कहीं भूरि मिट्टी
मैं इसके बीचों-बीच खड़ा
जैसे सारी जमीन की धूरि मैं ही हूं
इस बीच, कितनी ही बार आवाज निकली होगी
मेरे भीतर से,
कि मैं इस जमीन का मालिक बन गया हूं
मेरी मालिकियत जैसे इसके कण-कण पर राज करती है
और मैं अपने अधिकार को अपने कब्जे में रखकर
गर्व से चलता हुआ
कितनी रौनक से भरा हुआ महसूस करता हूं।