♦ रचनाकार: अज्ञात
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जमुना किनारे मेरौ गाँव आ जइयो॥ टेक॥
जमुना किनारे मेरी ऊँची हवेली,
मैं ब्रज की गोपिका नवेली।
राधा रंगीली मेरौ नाम कि बंशी बजाय जइयो॥ 1॥
मल-मल कै स्नान कराऊँ,
घिस-घिस चन्दन खौर लगाऊँ।
पूजा करूँ सुबह शाम कि माखन माख जइयो॥ 2॥
खस-खस कौ बंगला बनवाऊँ,
चुन-चुन कलियाँ सेज सजाऊँ।
धीरे-धीरे दाबूँ में पाम, प्रेम-रस पियाय जइयो॥ 3॥
देखत रहूँगी बाट तुम्हारी
जल्दी अइयो कृष्णमुरारी।
झाँकी करेंगी ब्रजवाम कि हंस-मुस्काय जइयो॥ 4॥
तुम से फँस रहौ प्रेम हमारौ,
खिच्चो कह रहौ आटे बारौ।
बाबू खलीफा मेरौ काम नैंक करवाय जइयो॥ 5॥