Last modified on 6 जनवरी 2014, at 13:02

जयति जय गोप्रेमी गोपाल / हनुमानप्रसाद पोद्दार

जयति जय गोप्रेमी गोपाल।
ठाढ़े मधुर मनोहर कमल-सरोबर-तट नँदलाल॥
नील स्याम उज्ज्वल आभा, कर मुरली गल बनमाल।
रत्न-मयूर-मुकुट, कुंचित कच कृस्न, तिलक बर भाल॥
पीत बसन, भूषित अँग भूषन, मोहन नैन बिसाल।
अरुन कमल कर बाम सुसोभित, नूपुर चरन रसाल॥
परस पा‌इ सुचि स्याम अंग सुखमग्र सुरभि ततकाल।
रही अचल पाहन-मूरति-सी भूलि जगत-जंजाल॥