Last modified on 29 अगस्त 2008, at 00:02

जय-बेला / महेन्द्र भटनागर


विषाद की नहीं क़यामती-निशा,
न डर कि हिल रही है हर दिशा!
उफ़न रहा समुद्र क्रुद्ध हो,
हरेक व्यक्ति बस प्रबुद्ध हो !
दवारि, साथ लो नवीन जल,
दलिद्र है सभी पुराण बल !
1945