जय भारतमाता!
जय हे सागराम्बरा, जय भारतमाता!
शुचिभ्राजा, सुवर्चसा, स्वलंकृता, ख्याता!
जय-जय चित्रकानना, कर्मभूमि जय हे!
जय-जय चारुदर्शना, धर्मभूमि जय हे!
जय हे कल्पथालिका, आद्रिकुण्डला हे!
जय हे दुर्गमालिका, इला निर्मला हे!
रजतकिरीट तुम्हारा घन से ऊपर हे,
अन्तरिक्ष में वलयित हिमगिरि दुर्धर हे!
विन्ध्यमेखला से तब कटि-तट शोभित हे,
कमलकर्णिका लंका से पद मण्डित हे!
हिन्द महासागर तव चरण पखार रहे,
मोती उगल-उगल कर तुम पर वार रहे।
गंगा-यमुना-झेलम-सतलज-वेत्रवती,
कृष्णा-कावेरी से हो तुम हविष्मती।
जय हे अमृतदोहिनी, जय हे मुक्तिप्रदा!
जय हे रत्नप्रसविनी, जय हे भुक्तिप्रदा!
पानमखानसंयुता, शस्यर´्जिता हे!
हंसमयूरनन्दिता, धातुमण्डिता हे!
आम्रविटप तव नन्दनवन मे बौर लिए,
सर्ज, चिनार, भोजद्रुम, अजुन चौर लिए,
वकुल, अशोक मनोरम वन्दनवार बने,
झूम रहे चम्पा-पाटल गलहार बने।
गन्धशालि, रोहणदु्रम से तुम गन्धवती!
तुम हो देवमातृका, तुम हो छन्दवती!
जय-जय भुवनभावनी, देवमयी जय-जय!
जय-जय परम पावनी, वेदमयी जय-जय!
तड़ितप्रपातनादिता, कुसुमदीपिता हे,
विपिनवितानराजिता, लताकीर्त्तिता हे,
तुम न अधीना हो दीना, तुम स्वाधीना,
नित्य नवीना हो तुम, यद्यपि प्राचीना।
तुम हो सिन्धुमन्थिनी, तुम हो यशस्तमा!
तुम हो छन्दगामिनी, तुम हो मनोरमा!
हव्या ऋतम्भरा हे, प्रेममयी जय हे!
दिव्या चिदम्बरा हे, श्रेयमयी जय हे!
हम न विडोलित, कम्पित, शंकित, विचलिति हे!
यज्ञ-छन्द से छन्दित, हम अभिमन्त्रित हे!
हम दिनमणि-सम भास्वर, धृतिमत, गतियुत हे!
दिक्स्वस्तिक के महायाम में मन्द्रित हे!
हम विघटन से विरहित, शक्तितरंगित हे!
हम तव पद पर अर्पित, हम तव अनुगत हे!
जय हे हरितशाद्वला, भुवनवन्दिता हे!
जय हे नित्यमंगला, नित्यनन्दिता हे!
(‘आजकल’, मार्च, 1963)