♦ रचनाकार: अज्ञात
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जरमन तेरा जाइयो राज,
आज ना तडकै !
तन्ने मारे बिराने लाल
जहाज भर-भर के !
मैं किस पर करूँ सिंगार
कालजा धड़के!
भावार्थ
--'अरे जरमन ! तेरा राज ख़त्म हो जाए, आज ही या कल सुबह तक तू सत्ता में न रहे । अरे तूने कितने ही
पराए बेटों को मार डाला । वे हमारे पति थे जो जहाजों में भर-भर कर मोरचों पर ले जाए गए थे । हाय ! मैं
शृंगार करूँ भी तो कैसे ? मेरा तो कलेजा धड़क रहा है !'