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जलखय बेराँ मनऽ के / श्रीस्नेही

झटपट चलली माथा पेॅ थरिया धरी केेॅ गोरिया घरऽ के!
मनऽ में एकेॅ बात पिया असरा देखतेॅ होतै जलपानऽ के॥

केना पहुँचवै जल्दी हराठऽ।
बाटऽ ने बूझै दरदऽ के गाँठऽ॥

जेतन्है जल्दी गोड़ बढ़ाबौं ओथनैं बढ़ै दूर-बाटऽ के।
मनऽ में एकेॅ बात पिया असरा देखतेॅ होतै जलपानऽ के॥

गाछी के डार तोड़ी मुँह-कान धुलैबै।
लोटा के पानी लेॅ कुल्ला करैवै॥

होथैं भिनसरवा बासिये मुँहें गेलऽ सिगार छोड़ी सेजऽ के।
मनऽ में एकेॅ बात पिया असरा देखतेॅ होतै जलपानऽ के॥

खुद्धी-कलाय रोटी हुनक पियारऽ।
कच्चू के भैरता बड़ी मनियारऽ॥

चटनी-पियाज छोड़ी करै न चरचा हमरऽ पिया जी भातऽ के।
मनऽ में एकेॅ बात पिया असरा देखतेॅ होतै जलपानऽ के॥

अँचरा बिछाय सामी आसन बैठैबै।
खिस्सा-पिहानी कही मऽन भर खिलैबै॥

गाबी केॅ झूमर नाची खेतऽ मैं चिंता मिटाबै मनऽ के।
मनऽ में एकेॅ बात पिया असरा देखतेॅ होतै जलपानऽ के॥

बीड़ी-तमाकु हुनका नै भाबै।
कैहऽ कैहऽ खैनी लेॅ मऽन ललचाबै॥

सोहऽ नै रैल्हऽ छोड़ी तमाकू पैडा पकड़लाँ बनऽ के।
मनऽ में एकेॅ बात पिया असरा देखतेॅ होतै जलपानऽ के॥

ललकलि गेली खेते-खेत।
बूझै नै डाँड़ बाँध पानी के रेत॥

पड़थै नजर गोरी, पिया मुसकाबै अँचरा पोछी धार धामऽ के।
मनऽ में एकेॅ बात पिया असरा देखतेॅ होतै जलपानऽ के॥