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जलता हूँ, सुलगता हूँ, पिघलता हूँ कि मैं हूँ / मुकुल सरल

जलता हूँ, सुलगता हूँ, पिघलता हूँ कि मैं हूँ
जीता हूँ कि तू है कहीं, मरता हूँ कि मैं हूँ

मैं हूँ कि मैं कि तू है, तू है कि तू ही तू
छूकर तुझे तस्दीक मैं करता हूँ कि मैं हूँ

होना मेरा क्या होना है, राजा न सिपाही
हर रोज़ रजिस्टर में ये भरता हूँ कि मैं हूँ

ये इश्क़, जुनूँ क्या है, क्या खौफ़, क्या गिला
ये आग है अपनी ही, जलता हूँ कि मैं हूँ