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जलते शहर का दर्द / शहंशाह आलम

ज़िक्र छिड़ा जब दौरे-अजब का
झील में रोया है चांद शब का

सीना ताने कब से खड़ा है
हौसला पर्वत का है ग़ज़ब का

जलते शहर का दर्द न जाने
सूरज निकला बस मतलब का

मांगा लहू जब शे’रो-सुख़न ने
ग़म में ‘शहंशाह’ डूबा कब का।