ज़िक्र छिड़ा जब दौरे-अजब का
झील में रोया है चांद शब का
सीना ताने कब से खड़ा है
हौसला पर्वत का है ग़ज़ब का
जलते शहर का दर्द न जाने
सूरज निकला बस मतलब का
मांगा लहू जब शे’रो-सुख़न ने
ग़म में ‘शहंशाह’ डूबा कब का।
ज़िक्र छिड़ा जब दौरे-अजब का
झील में रोया है चांद शब का
सीना ताने कब से खड़ा है
हौसला पर्वत का है ग़ज़ब का
जलते शहर का दर्द न जाने
सूरज निकला बस मतलब का
मांगा लहू जब शे’रो-सुख़न ने
ग़म में ‘शहंशाह’ डूबा कब का।