जलपरी,
तुम कौन-सी नदी में
कल पड़ी?
जलकन्या,
तुम्हारा इंतज़ार मैंने तो
कल किया।
आज क्षीण-सी धाराएँ
दूर से दूर तक
भूमि पर बहती हैं।
कहो अब मुझसे –
कहाँ कल मुझको
मिलना है तुमसे?
वह क्या है
जो पूरी करेगा
मेरी चाहत?
शायद बरसात।
और अब यही कविता चेक भाषा में
Rusalko
Rusalko, řekni,
do které včera
lehla sis řeky?
Rusalko, já včera
na tebe čekal jsem
z rána do večera.
Dnes tenký pramínek
po zemi plazí se
z daleka do dálek.
Chci se tě zeptat –
kde zítra s tebou
mohu se potkat?
Co někdy ještě
splní mou touhu?
Snad jenom deště.