क्या जल समझता है तुम्हारी किसी व्यथा को? फिर क्यों, फिर क्यों
जाओगे तुम जल में क्यों छोड़ गहन की सजलता को?
क्या जल तुम्हारे सीने में देता है दर्द? फिर क्यों, फिर क्यों
क्यों छोड़ जाना चाहते हो दिन रात का जलभार?
मूल बंगला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा
लीजिए, अब मूल बंगला में यही कविता पढ़िए
জল
জল কি তোমার কোনো ব্যথা বোঝে ? তবে কেন, তবে কেন
জলে কেন যাবে তুমি নিবিড়ের সজলতা ছেড়ে ?
জল কি তোমার বুকে ব্যথা দেয় ? তবে কেন তবে কেন
কেন ছেড়ে যেতে চাও দিনের রাতের জলভার ?
('दिनगुलि रातगुलि' नामक संग्रह में संकलित, कविता का मूल बांग्ला शीर्षक - बाउल)