Last modified on 10 जनवरी 2009, at 00:29

जवाँ जब वक़्त की दहलीज़ पर आँसू बहाता है / महावीर शर्मा

जवाँ जब वक़्त की दहलीज़ पर आंसू बहाता है,
बुढ़ापा ज़िन्दगी को थाम कर जीना सिखाता है।

तजुर्बे उम्र भर के चेहरे की झुर्रियाँ बन कर,
क़िताबे-ज़िन्दगी में इक नया अंदाज़ लाता है।

पुराने ख़्वाब को फिर से नई इक ज़िन्दगी देकर,
अधूरे से पलों को फिर कहानी में सजाता है।

किसी के चश्म पुर-नम दामने-शब में अंधेरा हो,
उमीदों की शमां बुझती हुई, फिर से जलाता है।

क़दम जब भी किसी के बहक जाते हैं जवानी में,
बुझी-सी ज़िन्दगी में इक नई आशा दिलाता है।