किसी का कवि होना
क्या इतना बड़ा अपराध है,
कि वह पाता रहे सजा
अनकिये कृत्यों की
दर्द वहां भी होता है
नहीं मिलते जहाँ चोट के
निशान,
वेदना वहां भी होती है
जहाँ मांगी जाती है माफ़ी
अपने ही कातिलों से,
घुटन वहां भी होती है,
जब प्रतिकार को नहीं मिलती
इज़ाज़त मुंह खोलने की,
हर मौन मुखर होना
चाहता है,
सीमित दायरों में बंधकर भी,
मौन की चीत्कार
का भला क्या कोई प्रतिउत्तर
संभव है,
एक शून्य तब भी रहता है
जहाँ तीरों की बौछार
छलनी कर देती है संवेदनाएं,
अंतर्मन की ताल पर
नाचते भाव क्या फिर ले पाएंगे,
कभी शब्द-रूप,
दहशत की जमीन में
क्या रोंप सकता है कोई
प्रतिभा का नवांकुर
यदि दे सकते हैं तो दीजिये जवाब
हर शांति दूत का स्वागत
है मेरी दुनिया में...