राग रामकली
जसोदा ऊखल बाँधे स्याम ।
मन-मोहन बाहिर ही छाँड़े, आपु गई गृह-काम ॥
दह्यौ मथति, मुख तैं कछु बकरति, गारी दे लै नाम ।
घर-घर डोलत माखन चोरत, षट-रस मेरैं धाम ॥
ब्रज के लरिकनि मारि भजत हैं, जाहु तुमहु बलराम ।
सूरि स्याम ऊखल सौं बाधै, निरखहिं ब्रजकी बाम ॥
यशोदा जी ने श्यामसुन्दर को ऊखल में बाँध दिया है । मनमोहन को बाहर (आँगन में)ही छोड़कर स्वयं घर के कार्य में लग गयी हैं । दही मथती जाती हैं और मुख से नाम ले -लेकर गाली देती हुई कुछ बकती भी जाती हैं कि `यह घर-घर मक्खन चुराता घूमता है जब कि मेरे घर में छहों रस (भरे) हैं । ब्रज के लड़कों को मारकर भाग जाता है । (इसे नहीं छोड़ूँगी।) बलराम! तुम भी चले जाओ ।' सूरदास जी कहते हैं कि व्रज की गोपियाँ श्यामसुन्दर को ऊखल बँधा देख रही हैं ।