शाख़-शाख़ बुलबुल
लिखती है
पत्ता-पत्ता गुल
लिखती है ।
बेटी माँ से
जो पढ़ती है
बच्चों में वो कुल लिखती है ।
सहर लिखे
उसकी पेशानी
शब उसके काकुल लिखती है ।
हर लम्हे वो
फ़लक वक़्त की
जस का तस बिल्कुल लिखती है ।
जब लिखती है
हवा इबारत
पानी पर ढुलमुल लिखती है ।