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जहाँ वह शव था / प्रभात

मैं रात भर चलकर वहाँ पहुँचा घाटी से मैदान की ओर
जहाँ वह शव था लोग खड़े और बैठे हुए थे जिसके चहुँओर

उस वक़्त मैं थका था रुदन नहीं था मेरे भीतर
जो कुछ था वह शव की तरह था मेरे भीतर
या अधिक से अधिक उन लकड़ियों की तरह
जो शव को जलाने के लिए वहाँ लाई गई थीं

फिर कितने महीनों बाद आज
दाह की आँच जैसी जलाती दोपहर में
मेरे निर्जन में एकाएक फूटा रुदन का निर्झर

उन्हें मुझसे कभी प्यार नहीं रहा
घर का बँटवारा होने से पहले तक
मेरा बचपन उनके साथ
पाटोर की छत के नीचे रहते हुए बीता
उन्होंने सिर्फ़ मेरे लिए कभी कुछ नहीं किया
मगर मेरी बहुत सारी ज़रूरतें
सिर्फ़ उनकी वज़ह से पूरी होती रही

उनके रहने सहने और जीने में
धीरज था लगन थी और गहराई
सरसों की फलियों में दानों की जगह पानी भर जाता
गेहूँ की फ़सल को बादलों की भगदड़ रौंद डालती
वे इन बेरहम हालातों में
टूटी हुई खाटों को ठीक करने का काम करते
लालटेन जलाकर पशु-बाड़े में नवजात बछड़े के पास बैठे रहते
यही उनका स्वभाव था

मैं अपने मृतकों को याद करता हूँ
ताकि उनकी खूबियों की धूप
अपने घने उदास अँधेरों में फैला सकूँ