Last modified on 28 अप्रैल 2020, at 02:32

जहान से बाहर / केदारनाथ अग्रवाल

जहान से बाहर
        अजान में जा रहा आदमी

कहीं से कहीं — 
न कहीं कुछ होने के लिए,

अपने को गुमराह किए — 
दूसरों को तबाह किए — !

10 अक्तूबर 1980